9 अक्टूबर 2025 को बहुजन समाज पार्टी (BSP) की महा-रैली ने लखनऊ के ‘मल्टीपरपज़ हॉल’ की बगियाओं को नीले झंडों से भर दिया। पार्टी सूत्रों ने मौके पर जुटी भीड़ के आकार का अनुमान ‘दो लाख से ऊपर’ लगाया है दैनिक अखबारों में इसे “नीला सैलाब” कहा गया, जिसमें पूरे प्रदेश से आए कामगार, छात्र और किसान शामिल थे।
भीड़ को देखकर यही लगा कि पिछली बार के चुनावी हार के बाद भी दलित-बहुजनों का मायावती और BSP में विश्वास कायम है। रैली का माहौल खासकर युवा चेहरे दिखा रहा था – Hhindustan Times की रिपोर्ट के अनुसार “रैली में हजारों युवा चेहरों की भीड़” थी।
मायावती ने मंच से ही बताया कि ये भीड़ पैसे देकर नही बुलाई गयी बल्कि अपने “खून-पसीने की कमाई” से आई है जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास लौटा आया है ।
अकेले लड़ेंगे 2027 का चुनाव : गठबंधन को कहा नुकसानदेह
रैली में मायावती ने स्पष्ट ऐलान किया कि BSP 2027 के यूपी चुनाव अकेले ही लड़ेगी। उन्होंने बताया कि पुरानी प्रतिक्रियाओं से सीखते हुए अब कोई गठबंधन नहीं होगा। क्योकि “जब जब हमारी पार्टी ने कोई गठबंधन किया तो हमें कुछ भी फायदा ही नहीं हुआ।
उल्टा हमारे लोगों के वोट तो विपक्षी पार्टियों को गए , लेकिन ऊंची जातियों के वोट BSP तक नहीं पहुंचे। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि अकेले लड़कर ही 2007 में BSP ने 206 सीटें जीती थी।
युवाओं से जुड़ी अपनी रणनीति बताते हुए मायावती ने कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि वे 2027 की तैयारियों में जुट जाएँ और पार्टी को सत्ता में लेन के लिए मेहनत करें।
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युवा चेहरे और रणनीति: आकाश आनंद को नई जिम्मेदारी
रैली से एक साफ संदेश यह भी मिला कि BSP नई पीढ़ी को मजबूत कर रही है। मंच पर मायावती के साथ उनके भतीजे आकाश आनंद भी नज़र आए, जिन्हें पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और संभावित उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया गया।
संगठन में युवा आक्रामकता दिखाते हुए मायावती ने रणनीति में बदलाव की झलक दी: उन्होंने रैली में उत्तर प्रदेश के Satish Chandra Mishra (कांग्रेस-प्रभावी) के बेटे कपी!ल मिश्रा और पिछड़ा वर्ग नेता विश्वनाथ पाल तथा अल्पसंख्यक नेता जमीअल अख्तर का नाम लेकर उन्हें उजागर किया, ताकि BSP का मैसेज PDA (पिछड़ा–दलित–अल्पसंख्यक) फ़ॉर्मूले को चुनौती देने वाला बने।
रैली का नारा भी यही था – “राशन नहीं, शासन चाहिए” – जो नए लक्ष्यों की ओर संकेत करता है। दलित-मजदूर-वर्गों में मायावती की लोकप्रियता बरकरार है और इस रैली में उनकी सक्रिय उपस्थिति ने बड़े हिस्से में युवा मतदाताओं को BSP की ओर आकर्षित किया।
रैली के बाद हलचल: विपक्ष और मीडिया की प्रतिक्रिया
रैली को शक्ति प्रदर्शन बताते हुए विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मायावती पर आरोप लगाया कि BSP की यह रैली BJP के साथ “गुप्त समझौता” का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि मायावती भाजपा को अपने कष्टदाताओं के रूप में अपना आभार व्यक्त कर रही हैं – वे अपने दमनकारियों के प्रति आभारी क्यों हैं। अखिलेश ने साथ ही अपना PDA फार्मूला दोहराया और कहा कि SP–INDIA गठबंधन जल्दी ही सत्ता में आएगा। 
मीडिया विश्लेषकों ने रैली को बीएसपी की वापसी की चेतावनी माना। NDTV ने लिखा कि लखनऊ रैली में उमड़ी भीड़ से BSP को नई ऊर्जा मिली है और दिखाया कि दलित वर्ग अब भी मायावती में विश्वास रखता है। 
इंडियन एक्सप्रेस ने भी माना कि “भीड़ जुटने” से BSP को झटका देने की गलत धारणा को चुनौती मिल सकती है। कई रिपोर्टों ने इसे 2007 की याद दिलाने वाला मोर्चा बताया, जब BSP अकेले सरकार बनाने में सफल हुई थी। 
समग्रतः रैली ने साफ संदेश दिया कि मायावती BSP के पुराने वोट बैंक को फिर से संजोने को आतुर हैं और 2027 की रणभूमि में “नीली लहर” बनकर उभरना चाहती हैं।

 
 
 
 
 
 
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